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डर लगता है... (गजल) ❤️❤️✍️✍️
मुझे दुनिया दारी से डर लगता है
अपनों की गद्दारी से डर लगता है

न जाने कब धूप न जाने कब छांव
मौसम की खुमारी से डर लगता है

मुझे काटों से मोहब्बत है 'सत्या'
मगर फुल वारी से डर लगता है

वो शौक से जा सकते हैं छोड़कर
जिन्हें मेरी यारी से डर लगता है

कोई आके मुझ पे तगादा न कर दे
किसी की उधारी से डर लगता है

उसने काफी दिलों का किया कत्ल
मुझे अपनी बारी से डर लगता है

पता नहीं कब तक पडेगा तड़पना
दिल की बेकरारी से डर लगता है

रिश्ते खराब होते हैं तीसरे के आने से
बस इसी मारामारी से डर लगता है





© Shaayar Satya