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बात तुम्हारी फिजूल की।।
आकाश में उड़ी है आकाश थोड़ा बन गई,
वो रोशनी के रास्ते में थोड़ी देर तन गई,
मिलना मिट्टी में है, इतनी ही औकात है धूल की।
• मैं समझना ही नहीं चाहता बात तुम्हारी फिजूल की।।
कितनी देर दबा लोगे ताकत के जोर से,
दिन हर किसी के बदलते हैं सुनो जरा गौर से,
अच्छी लगती है बात अगर करो असूल की।
• मैं समझना ही नहीं चाहता बात तुम्हारी फिजूल की।।
5% महीना ब्याज ढाई साल खा लिया,
इस तरह मूल का डेढ़ गुना तो पा लिया,
फिर भी पूरी-की-पूरी खड़ी है रकम मूल की।
• मैं समझना ही नहीं चाहता बात तुम्हारी फिजूल की।।
© Dharminder Dhiman
वो रोशनी के रास्ते में थोड़ी देर तन गई,
मिलना मिट्टी में है, इतनी ही औकात है धूल की।
• मैं समझना ही नहीं चाहता बात तुम्हारी फिजूल की।।
कितनी देर दबा लोगे ताकत के जोर से,
दिन हर किसी के बदलते हैं सुनो जरा गौर से,
अच्छी लगती है बात अगर करो असूल की।
• मैं समझना ही नहीं चाहता बात तुम्हारी फिजूल की।।
5% महीना ब्याज ढाई साल खा लिया,
इस तरह मूल का डेढ़ गुना तो पा लिया,
फिर भी पूरी-की-पूरी खड़ी है रकम मूल की।
• मैं समझना ही नहीं चाहता बात तुम्हारी फिजूल की।।
© Dharminder Dhiman
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