...

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"आधुनिक स्त्री"
समुन्द्र सी गहरी,
तेरी सोच में,
बसा सारा संसार है,
जिसे दुखा रहा,
सारा जहाँ है,

पर तेरी जल सी,
कोमलता के आगे,
झुका भी सारा जहाँ है,

दुनिया जूझ रही,
तूझे बयान करते-करते,
पर जो लिख सके अगर,
ऐसी स्याही और कलम कहाँ हैँ,

ऐ स्त्री तू बोहोत,
अनमोल मूरत,
उस पर्वरदिगार की,
तुझे समझता है ये इंसान,
ऐसी सोच में उलझा,
हर जवान है,

तू खास है, अमूल्य है,
पर तेरी भी कीमत,
तय करने वाले,
यहाँ हर इंसान है,

यहां इंसान बनना चाहता है, भगवान्,
पर करता स्त्रीयों का अपमान है,

ऐ स्त्री, तू सरल है,
सहनशील है,
शायद इसीलिए,
तुझ पर ऊँगली उठाना,
बनता जा रहा, अभिमान है,

लेकिन इस बात से,
अनजान हर जवान है,
की तू जानकर भी सब कुछ,
कर देती खुदको अनजान है,
ऐ स्त्री इसीलिए तू महान है...... 🖊️🖊️

© Sarang Kapoor