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परिवर्तन - प्रिय
प्रेम-सुधा के सागर में
कुछ बूंद गरल भी हो तो क्या !
सौम्य पुष्पों के एक वन में
कुछ कंटक भी गर हो तो क्या !
क्या भेद उसे जो जीवन को
प्रतिदिन उल्लास से जीता है ,
जो प्रभावहीन , दृढ़ निश्चयी सा
बस , अनुभव पीयूष को पीता है।।
धूमिल वो स्मृति बनाने को
गत से भविष्य भी बचाने को
जो निज मन पर प्रहार किए
उस निज मन की व्याकुलता को
जो धैर्य से अपने जीत लिया ,
भविष्य को अपने , उसने तब कुछ
स्वर्ण सुधा से सींच लिया .....
#छल_और_प्रेम
#वचन_सार्थक
© अभिषेक
कुछ बूंद गरल भी हो तो क्या !
सौम्य पुष्पों के एक वन में
कुछ कंटक भी गर हो तो क्या !
क्या भेद उसे जो जीवन को
प्रतिदिन उल्लास से जीता है ,
जो प्रभावहीन , दृढ़ निश्चयी सा
बस , अनुभव पीयूष को पीता है।।
धूमिल वो स्मृति बनाने को
गत से भविष्य भी बचाने को
जो निज मन पर प्रहार किए
उस निज मन की व्याकुलता को
जो धैर्य से अपने जीत लिया ,
भविष्य को अपने , उसने तब कुछ
स्वर्ण सुधा से सींच लिया .....
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