...

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-: आख़री-ख्वाब :-
गुरबत दिल से दिली बाते करके दिल ललचाया,
मन ही मन में ख्याली पुलाव बनाया,
हर पल हर समा सोचा याद करके,
तु अपना था या हम तेरे नहीं ,
पराये तुम थे तो ये सपने क्यों नहीं ,
क्यों तुम्हारी याद आज भी आती है,
ठहरी हुई जिंदगी को फिर से जगाती है,
एक आख़री बार मैं सोना चाहता हूँ,
तुम्हारे सपनों में खोना चाहता हूँ,
पहले हर ख्वाब की एक ही तमन्ना थी,
ख्वाब के बाद तु मिले बाहों में,
अब एक आख़री तमन्ना है,
आख़री नींद हो जो कभी ना खुले
और में रहु तुम्हारी बाहों में।


© Adv. Dhanraj Roy kanwal