...

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कैसे कह दे बुरा किसी को
कैसे कह दें बुरा किसी को हम भी भले नहीं हैं।
मंजिल कैसे पाएंगे जो घर से चले नहीं है।
हाथ मिला तो लेते हैं वो लगते गले नहीं है।
रोज सुलगते रहते हैं क्यूं अब तक जले नहीं हैं
बेशक दूर हैं इक दूजे से पर फासले नहीं हैं।
उससे मिलकर क्या बतलाए कितना खुश रहते हैं।
हवा में उड़ते हैं हम धरती कदमों तले नहीं हैं।।
जिनको वक्त पे दिया न पानी वृक्ष वो फले नहीं हैं।
© राम अवतार "राम"