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दिल की ज्योति
दिव्यलोक के दीनबन्धो, दिल की ज्योति जला दो।
सुंदर सुरुचिर चमक दमक से, रंग बिरंगे दीप बाहर के अंधकार को मिटाते हैं। मगर अंदर का अंधकार नहीं हटता है।
दिव्य लोक के दीन बन्धो, जला दो।
दिल की ज्योति नहीं जलेगी, तो भाव-कुटी में दीमक लगेगी, जो, सद्बुद्धि का नाश कर छोड़ेगी। सर्वत्र दानवता ही राज करेगी।।
दिव्य लोक के दीन बन्धो, जला दो। ।
अब बुद्धि की ज्योति तो अच्छी ही जली है। नर ने ग्रहों का पाणिग्रहण किया है। नक्षत्रों का मित्र बन, चंद्रलोक की सैर करता है।
अनेकों अपूर्व कार्यों का कारक बनता है।
दिव्य लोक के दीन बन्धो।
..जला दो। ।
दिल की भी ज्योति जले तो क्या ही अच्छा होगा। जिस दिन दिल की भी ज्योति नर की जलेगी। उस दिन युद्ध-बदली काली दूर हटेगी। सर्वत्र शांति-चाँदिनी ही शीतल छिटकेगी। दिव्य लोक के दीन बन्धो ।
जला दो। ।
न होगी अन्न-नीर की कमी किसी को। अमन की अमर बेलि आनंद देगी सभी को। अवश्य राहत पहुँचेगी दिलजलों की। आनंद भरा आदमी जीने का आशिश देगा सब को । । दिव्यलोक के दीन बन्धो ।
..जला दो। ।
© Kushi2212