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रावण

जात मे ब्राह्मण और शरीर से दानव,
बुद्धिमान था, शक्तिशाली था चारों बेद कंठस्थ था,
अपने धुन में भोलेनाथ को तांडव करवाता
फिर रावण कहलता था।
देवताओं को अपने बंदि बनके,
ग्रह को अपने इसरो मे नचाके, अपने भगय खुद लिखता था,
तीनों लोकों में शासन करते
सोने का लंका बनाया था।
अपने दर्प मे अंध था, अपने पराक्रम मे घमंड था,
अज्ञानी नहीं मूर्खता , जो भगवान को ना पहचान सका
बानर से परास्त होकर
अपने सब कुछ हराया था।
किसी को कोसे, जब अपनों ने धोखा दे,
लाल असमान के निचे
कंकालों के ढ़ेर मैं, कई सूर बीर थे
कैसे रोके जब खूद नारायण ही सजा दे।
आज भी रावण जिन्दा है,
आज भी रावण रोता है,
अपने कर्म पर पश्चात्ता है
अपने आप ही गुनगुनाता है,
कहता है, मैं तो सिर्फ रावण हूँ, यहां तो महारावण का भरमार है,
मुझे दसानन कहते हैं,
यहां तो सहस्र सहस्रानान है।
कि कोई उसे मोख्य दे, पर क्या करें,
यहां अब कोई राम नहीं,
इसलिए वह हर साल हर गली के मोड़ पर जलता है पर मरता नहीं।
दुसरा राम कब अबतरे वही आशा से बैठ है,
फिर भी रावण जिन्दा है,
आज भी रावण रोता है।
© Drath