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जो मैं कर सकता नहीं
मेरा भ्रम था कि मैं जो चाहे वो कर सकता हूँ
पर बहुत सी चीजें हैं जो मैं चाह के भी नहीं कर सकता
जैसे मैं चाह के भी अपने दिल कि बात किसी से कह नहीं सकता
मैं आँसू दिखा नहीं सकता
मैं मुस्कान छुपा नहीं सकता
मैं खुल के गा नहीं सकता
मैं चिल्ला नहीं सकता
मैं किसी जाते को आवाज़ लगा नहीं सकता
मैं समय में लौट कर वर्तमान में वापस उसे ला नहीं सकता
मैं वक़्त की सुई घुमा नहीं सकता
मैं सुनी आँखों को सजा नहीं सकता
मैं हथेली की रेखाएं मिटा नहीं सकता
मैं जलती चिताएं बुझा नहीं सकता
मैं सूखे फूलों को जगा नहीं सकता
मैं सूर्य की चमक खुद में समा नहीं सकता
मैं टूटते तारों को आसमान से मिला नहीं सकता
मैं बुझते ख्वाबों को सुलगा नहीं सकता
मैं बारीश की बूंदों को रोक नहीं सकता बरसने से
मैं भूखे को टोक नहीं सकता तरसने से
मैं आँखों को रोक नहीं सकता खटकने से
मैं सांसों को झोंक नहीं सकता अटकने से


मैं निर्जीव में प्राण डाल नहीं सकता
मैं किसी का काल टाल नहीं सकता
मैं बीते समय में झाँक नहीं सकता
मैं सुनहरे कल में ताक नहीं सकता
मैं यादों को मिटा नहीं सकता
मैं सवालों को भूला नहीं सकता
मैं जवाब तलाश तो सकता हूँ
पर उन जवाबों से खुदको संतुष्ट करा नहीं सकता
मैं चाह कर भी खुदसे उलझ नहीं सकता
मैं खुदको खुदपे हावी होने से रोक नहीं सकता
मैं अंतरात्मा के बाहव को मोड़ नहीं सकता
मैं जीवन के पराव को छोड़ नहीं सकता
मैं खुदसे किये वादों को तोर नहीं सकता
मैं अपना अस्तित्व अपने यथार्थ से जोड़ नहीं सकता
मैं पर्वतों पर गिरने वाले बर्फ को महसूस तो करना चाहता हूँ
पर ऊँचे शीर्ष से गिरने के खौफ को खुदसे निकाल नहीं सकता
मैं नदियों के किनारे छोड़ नहीं सकता
मैं नाव के सहारे नदी पार तो जा सकता हूँ
पर डूबने के एहसास को खुदसे निकाल नहीं सकता
मैं समंदर किनारे सिप इकठ्ठा करना तो चाहता हूँ
पर लहरों में बह जाने का डर खुदसे निकाल नहीं सकता

मैं अपने हक की जमीं पा नहीं सकता
मैं अपना असमां सिर को दिला नहीं सकता
मैं उड़ते पंछीयों को देख खुदको पँख लगा नहीं सकता
मैं जमीं का होकर भी खाक में खुदको मर्ज़ी से मिला नहीं सकता
मैं कागज़ के नाव बना नहीं सकता
मैं सपनों में मेले लगा नहीं सकता
मैं नाटक का पात्र तो बन सकता हूँ
पर अपने जीवन का सूत्रधार खुदको बना नहीं सकता

© meteorite