मशग़ूल था ख़्वाबों में
मशग़ूल था ख़्वाबों में उसके
क्यूं नींद से मुझे जगाया है ?
लबों में दफ़्न जो राज़ थे कब से
वो हाल इन्होंने सुनाया है
सूरत जो देखी पहली दफ़ा
तसव्वुर इक ज़ेहन में छा गया
जिस मर्ज़ की ना थी दवा कोई
वो मर्ज़ ही मन को भा गया
इंतज़ार जो हर पल उसका था
महफ़िल में तन्हा बना गया
सौ कोशिशें उसे बुलाने की
इस बेरुख़ी ने बड़ा सताया है
मशग़ूल था ख़्वाबों में उसके
क्यूं नींद से मुझे जगाया...
क्यूं नींद से मुझे जगाया है ?
लबों में दफ़्न जो राज़ थे कब से
वो हाल इन्होंने सुनाया है
सूरत जो देखी पहली दफ़ा
तसव्वुर इक ज़ेहन में छा गया
जिस मर्ज़ की ना थी दवा कोई
वो मर्ज़ ही मन को भा गया
इंतज़ार जो हर पल उसका था
महफ़िल में तन्हा बना गया
सौ कोशिशें उसे बुलाने की
इस बेरुख़ी ने बड़ा सताया है
मशग़ूल था ख़्वाबों में उसके
क्यूं नींद से मुझे जगाया...