...

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जिंद़गी
ज़िंदगी अब जीने लायक
नहीं रही
यहाँ प्यार बिकता हैं
बद़न की किमत भी
होती हैं
एहसास एक नाटक
होता हैं
एह़सान इक बड़ी
सच्चाई हैं
ज़िंदगी अब जीने लायक
नहीं रही
लोग आपस में मिलतें
भी हैं, मगर
लोग आपस में बातें
भी करतें हैं, मगर
स्वार्थ और नफ़े के ब़गैर
कोई मख़्सत नहीं होता
जिंदगी अब जीने लायक
नहीं रही
ख़ून के प्यासें इन
द़रिंदों की प्यास
मिटती नहीं
द़लाली इन्सांनों की
इनकी कभी ख़त्म
नहीं होती
पैसा कितना भीं क्यों
ट़टोल ले, मगर
समाधान इनका
कतई होता नहीं
जिंदगी अब जीने लायक
नहीं रही ।।
जिंदगी अब वो जिंदगी
नहीं रही............
© Subodh Digambar Joshi