...

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होंसले...
रूठें-रूठें कुछ ख्वाब है रूठी सी रातें है...
खुद से खुद की कुछ.. मुलाकाते है...

अनजानी सी राहे है....अनजान सफर
बेखौफ कदम है..... बेखौफ काफिले है

अपनी मुठी में अपने टूटे अरमा है.....
है धरती के दामन पर हम दूर अभी असमा है....

उम्मीद तो है... थोड़ी है भले !!!
जुगनू हौसलों के रातों को रोशन करें.....

मंजिल है पर अँधेरे में डूबी हुई...
सूरज तो है मगर बादलो में घिरा हुआ....

मगर किरण निकलेगी किसी रोज़
रख तू खुद पे यकीन
तेरा भी वक़्त चमकेगा रुके ना अगर तू कभी......

कदम-कदम साथ रख कर चल..... आयेगी रौशनी कभी
आज दूर है सब तो क्या हुआ.... पास होगा कभी ना कभी....






© VISHAKHA