...

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"मोहब्बत का दायरा"
कभी रूहानियत भरे होते थे
मोहब्बत के अफसाने!!
मगर आज जिस्मों तलक़
सिमट गया है मोहब्बत का दायरा!!

कभी जान पर खेलकर भी निभाई
जाती थी मोहब्बत की रस्में,आज
मगर एक खेल बन गया है
इश्क़ का फसाना!!

कभी हया से सिमटती महबूबा पर
नज्म़ लिखे जाते थे,आज
मगर शर्म और हया हुआ है
एक गुज़रा जमाना!!

मोहब्बत फकत़ आज किताबों के
सफ़हे पर ही लिखें जाते है,लैला मजनू
शिरी फरहाद को आज याद करता
नहीं ये जमाना!!




© Deepa🌿💙