महावीर भगवान की पूजा
शी १००८ महावीर भगवान पूजा
केवल ज्ञान प्रकाशित है,फिर भी अपने रमे रहें
जहा निरंतर सुख मिलता ,उस आतम में रमण करे
ऐसे वीर पभु को देखो, अपने स्वभाव पर राज्य करे
वर्तमान के वर्धमान को ,हम बारंबार नमन करे
स्थापना
अपने स्वभाव को पाकर के जनम मरण मेटा तुमने
हमने अब -तक समय गँवाया ,अब सच जाना है तुमसे
ना जन्मा ना मरा कभी, बस भ्रम में जीता आया हूँ
जनम मरण मेटन कारण जल भर कलश लाया हूँ
जल
स्व स्वभाव की लगी लगन, आप तिरे संसार से
शरण तिहारी में भी आया, तिर जाऊ संसार से
स्व ज्ञान के हम अधिकारी,अज्ञानी कर बन भ्रमण करे
चंदन लेकर आया हूँ में ,भव आतप शमन को करे
चंदन
सर्वोच्च पद के तुम हो धारी,अक्षय पद में निवास करे
हम भी इस पद को धारे , इस पथ का अनुशरण करे
अब अपने स्वभाव को भावो से ,स्वीकार करे
चुन-चुन अक्षय लेकर आया, अक्षय पद के पाने को
अक्षत
काम वासना इन्द्रीय दुःख है, ये सब तुमने त्याग दिये
इनको हमने अपना माना, हम इंद्रियों रमें रहे
अब इनसे में बाहर निकलू ऐसे मेरे भाव जगे
पुष्प सजा कर थाली लाया, काम वासन मिटे मेरे ।
पुष्प
जीव पुदगल से भिन्न सदा, तुमने सम्यक् भाव धरे
जीव ना खोवे अन्न का दाना, खाने के बस भाव करे
छः द्रव्य जब भिन्न भिन्न है, जीव पुदगल मिलते कैसे
नेवध लेकर लाया हूँ में,क्षुधा रोग मिटे मेरे
नेवध
मोह ही हैं संसार की देन,मोह आपने त्याग दिये
इस मोह जाल की माया में, हम अब तक फँसे रहे
नशा का मोह अब उतरे ,...
केवल ज्ञान प्रकाशित है,फिर भी अपने रमे रहें
जहा निरंतर सुख मिलता ,उस आतम में रमण करे
ऐसे वीर पभु को देखो, अपने स्वभाव पर राज्य करे
वर्तमान के वर्धमान को ,हम बारंबार नमन करे
स्थापना
अपने स्वभाव को पाकर के जनम मरण मेटा तुमने
हमने अब -तक समय गँवाया ,अब सच जाना है तुमसे
ना जन्मा ना मरा कभी, बस भ्रम में जीता आया हूँ
जनम मरण मेटन कारण जल भर कलश लाया हूँ
जल
स्व स्वभाव की लगी लगन, आप तिरे संसार से
शरण तिहारी में भी आया, तिर जाऊ संसार से
स्व ज्ञान के हम अधिकारी,अज्ञानी कर बन भ्रमण करे
चंदन लेकर आया हूँ में ,भव आतप शमन को करे
चंदन
सर्वोच्च पद के तुम हो धारी,अक्षय पद में निवास करे
हम भी इस पद को धारे , इस पथ का अनुशरण करे
अब अपने स्वभाव को भावो से ,स्वीकार करे
चुन-चुन अक्षय लेकर आया, अक्षय पद के पाने को
अक्षत
काम वासना इन्द्रीय दुःख है, ये सब तुमने त्याग दिये
इनको हमने अपना माना, हम इंद्रियों रमें रहे
अब इनसे में बाहर निकलू ऐसे मेरे भाव जगे
पुष्प सजा कर थाली लाया, काम वासन मिटे मेरे ।
पुष्प
जीव पुदगल से भिन्न सदा, तुमने सम्यक् भाव धरे
जीव ना खोवे अन्न का दाना, खाने के बस भाव करे
छः द्रव्य जब भिन्न भिन्न है, जीव पुदगल मिलते कैसे
नेवध लेकर लाया हूँ में,क्षुधा रोग मिटे मेरे
नेवध
मोह ही हैं संसार की देन,मोह आपने त्याग दिये
इस मोह जाल की माया में, हम अब तक फँसे रहे
नशा का मोह अब उतरे ,...