...

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Aanshu.....
किसी का ग़म सुन के

मेरी पलकों पे

एक आँसू जो आ गया है

ये आँसू क्या है



ये आँसू क्या इक गवाह है

मेरी दर्द-मंदी का मेरी इंसान-दोस्ती का

ये आँसू क्या इक सुबूत है

मेरी ज़िंदगी में ख़ुलूस की एक रौशनी का

ये आँसू क्या ये बता रहा है

कि मेरे सीने में एक हस्सास दिल है

जिसने किसी की दिलदोज़ दास्ताँ जो सुनी

तो सुनके तड़प उठा है

पराये शोलों में जल रहा है

पिघल रहा है

मगर मैं फिर ख़ुद से पूछता हूँ

ये दास्ताँ तो अभी सुनी है

ये आँसू भी क्या अभी ढला है

ये आँसू

क्या मैं ये समझूँ

पहले कहीं नहीं था

मुझे तो शक है कि ये कहीं था

ये मेरे दिल और मेरी पलकों के दरमियाँ

इक जो फ़ासला है

जहाँ ख़यालों के शहर ज़िंन्दा हैं

और ख्वाबों की तुर्बतें हैं

जहाँ मुहब्बत के उजड़े बा॰गोंं में

तलि्ख़यों के बबूल हैं

और कुछ नहीं है

जहाँ से आगे हैं

उलझनों के घनेरे जंगल



ये आँसू

शायद बहुत दिनों से

वहीं छिपा था

जिन्होंने इसको जनम दिया था

वो रंज तो मसलेहत के हाथों

न जाने कब क़त्ल हो गये थे

तो करता फिर किसपे नाज़ आँसू

कि हो गया बेजवाज़ आँसू

यतीम आँसू, यसीर आँसू

न मोतबर था

न रास्तों से ही बाख़बर था

तो चलते चलते

वो थम गया था

ठिठक गया था

झिझक गया था



इधर से आज इक किसी के ग़म की

कहानी का कारवाँ जो गुज़रा

यतीम आँसू ने जैसे जाना

कि इस कहानी की सरपरस्ती मिले

तो मुम्किन है

राह पाना

तो इक कहानी की उंगली थामे

उसी के ग़म को रूमाल करता

उसी के बारे में

झूठे-सच्चे सवाल करता

ये मेरी पलकों तक आ गया है।