...

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क्यूँ ?
कभी कभी सोचती हूँ मैं,
क्यूँ हम कुछ बनना चाहते हैं
खुद को साबित करना चाहते हैं ?

क्यूँ हम अंदर से खोखले,
बाहर से रंगीन है ?
क्यों तन की सजावट जरूरी है,
मन की शांति काफी नहीं ?

क्यों चेहरे की मुस्कान काफी नहीं ,
औदे की चमक जरूरी है ?
क्यों हमारी मुस्कान हमारा धन नहीं,
क्यों हमारा सुकून हमारी कामयाबी नहीं ?

क्यों कोई औदा बड़ा तो कोई छोटा है,
क्यों कोई राजगद्दी जरूरी है ?
क्यों पैसों की गिनती जरूरी है,
खुशियों की गिनती काफी नहीं ?

क्यों हमारा औदा हमारी पहचान है,
हमारा नाम काफी नहीं ?
क्यों हमारा सिर्फ होना काफी नहीं,
हमारा कुछ बनना जरूरी है ?
क्यों कोई सवाल नहीं पूछता,
क्यों कोई अपना "क्यों" नहीं पूछता ?