...

80 views

नई उम्मीद
लो बीत गया एक और बरस
अब आदत सी हो गयी बिना उसके
अब नही डर लगता जुदाई से
शरीर की इच्छा भी अब शांत हो गयी।।

पर नही दे सकती खुद को किसी और को
हक तो रहेगा तो सिर्फ उसका मेरे तन पर
उम्मीद है आएगा वो एक बार कभी न कभी
दोनो जिस्म हो जाएंगे एक जान तब

नई उम्मीद है खेलेगा वो मेरे साथ जवानी का खेल
होगा तब हम दोनों का फिर जिस्मानी मेल
इस बर्फीले मौसम में होगा पसीने का आगमन
फिर नही रहेगी फिक्र इस समाज की एक पल।।


© All Rights Reserved