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नई उम्मीद
लो बीत गया एक और बरस
अब आदत सी हो गयी बिना उसके
अब नही डर लगता जुदाई से
शरीर की इच्छा भी अब शांत हो गयी।।
पर नही दे सकती खुद को किसी और को
हक तो रहेगा तो सिर्फ उसका मेरे तन पर
उम्मीद है आएगा वो एक बार कभी न कभी
दोनो जिस्म हो जाएंगे एक जान तब
नई उम्मीद है खेलेगा वो मेरे साथ जवानी का खेल
होगा तब हम दोनों का फिर जिस्मानी मेल
इस बर्फीले मौसम में होगा पसीने का आगमन
फिर नही रहेगी फिक्र इस समाज की एक पल।।
© All Rights Reserved
अब आदत सी हो गयी बिना उसके
अब नही डर लगता जुदाई से
शरीर की इच्छा भी अब शांत हो गयी।।
पर नही दे सकती खुद को किसी और को
हक तो रहेगा तो सिर्फ उसका मेरे तन पर
उम्मीद है आएगा वो एक बार कभी न कभी
दोनो जिस्म हो जाएंगे एक जान तब
नई उम्मीद है खेलेगा वो मेरे साथ जवानी का खेल
होगा तब हम दोनों का फिर जिस्मानी मेल
इस बर्फीले मौसम में होगा पसीने का आगमन
फिर नही रहेगी फिक्र इस समाज की एक पल।।
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