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*** हम ***
*** कविता ***
*** हम ***
" मुझे मालूम है तुम्हें कुछ मालूम ना होगा ,
ये दरिया कहीं तेरी साहिल पे शामिल ना होगा ,
फिर किस इख्तियार से बताते कि मुझे तुम से मुहब्बत हैं ,
तुम जान सुन समझ के मेरे खामोशी का हिस्सा ना होते ,
क्या बताते फिरते कि किस अंदाज से गुजर रहे हैं ,
कभी जल कभी बुझ रहे हैं मैं इस अंसार में ,
क्या बताते किस कदर मुझसे टकराते फिर रहे हम ,
मर्ज क्या है और कौन सा दबा लेकर फिर रहे हम ,
जो इल्म हो जाये बता देना अपनी दिल की बात ,
आज भी तेरे गलियों से खाली हाथ लेकर फिर रहे हम ."
--- रबिन्द्र राम
© Rabindra Ram
*** हम ***
" मुझे मालूम है तुम्हें कुछ मालूम ना होगा ,
ये दरिया कहीं तेरी साहिल पे शामिल ना होगा ,
फिर किस इख्तियार से बताते कि मुझे तुम से मुहब्बत हैं ,
तुम जान सुन समझ के मेरे खामोशी का हिस्सा ना होते ,
क्या बताते फिरते कि किस अंदाज से गुजर रहे हैं ,
कभी जल कभी बुझ रहे हैं मैं इस अंसार में ,
क्या बताते किस कदर मुझसे टकराते फिर रहे हम ,
मर्ज क्या है और कौन सा दबा लेकर फिर रहे हम ,
जो इल्म हो जाये बता देना अपनी दिल की बात ,
आज भी तेरे गलियों से खाली हाथ लेकर फिर रहे हम ."
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