...

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दिल चाहता है तेरा साथ
रोक नही सकता मैं खुद को,तुम पर प्यार जताने को।
ये दिल चाहता है फिर से तेरा साथ पाने को।
कैसे खुद को रोक लूं,मन नही करता तुझसे दूर रहने को।
दुनियां बदल दूँ या,बदल दूँ,इन रीतिरिवाजों को।
क्यूँ अब इतना दर्द सहूँ,तरसता हूँ तेरा प्यार पाने को।
मेरी आत्मा पूछती मुझसे,क्यूँ दूर किया तूने अपने प्यार को।
कुछ जवाब नही मेरे पास,क्या कहूँ अब मैं खुद को।
पश्चयताप ही मेरी सज़ा है,कैसे बचाऊं खुद को जलने से।
रोक नही सकता मैं खुद को,तुम पर प्यार जताने को।
ये दिल चाहता है फिर से तेरा साथ पाने को।
संजीव बल्लाल १/४/२०२४© BALLAL S