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कुरबत
अजीब सा नसीब हैं
सब कुछ होकर भी
कुछ नहीं है
परिंदों से उड़ान तो भरते हैं
लेकीन पर नही हैं
हाथों की लकीरों को तो बदलते हैं
पर खुदा से दोस्ती नहीं है
खुद की हक की बात तो करतें है
पर गिले शिकवे में दिन गुजरते हैं
ख़ुद की बरकत में सभी को
शिरकत तो करतें है लेकीन
सबसे किनारा रखते हैं
रहस्य मई सा विरोधा भास है
सबसे कुरबत तो हैं लेकिन
फिर भी किसी से कुरबत नहीं
© lotus
सब कुछ होकर भी
कुछ नहीं है
परिंदों से उड़ान तो भरते हैं
लेकीन पर नही हैं
हाथों की लकीरों को तो बदलते हैं
पर खुदा से दोस्ती नहीं है
खुद की हक की बात तो करतें है
पर गिले शिकवे में दिन गुजरते हैं
ख़ुद की बरकत में सभी को
शिरकत तो करतें है लेकीन
सबसे किनारा रखते हैं
रहस्य मई सा विरोधा भास है
सबसे कुरबत तो हैं लेकिन
फिर भी किसी से कुरबत नहीं
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