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क्यूं हम बेटियों को...
क्यूं हम बेटियों को, ऐसा परिवेश मिलता है
प्यार से पली बढ़ी हमें, ससुराल में हर पल द्वेष मिलता है

पक्षियों की तरह क़ैद रहते हैं हम, अपने ही मकान में
कहने के लिए इंसान हैं, पर हम बेबस और लाचार है

ना अपनी कोई इच्छा है, ना अपनी कोई मर्जी है हर बात पर बंदिश लगी है, सबकी अपनी खुदगर्जी है

छोटी- छोटी बातों के लिए, हमें इनसे इजाजत लेनी पड़ती हैं
मिल गया तो खुशी होती है, वरना अपनी इच्छाओं को दिल में ही दबानी पड़ती हैं

कहने के लिए तो सभी अपने होते है, पर दिल से अपनाते नहीं हैं
अपनी मर्ज़ी हम पर चलाते हैं, और कहते हैं कि हम बहुओं को सताते नहीं हैं

चाहें तो हम भी इसका जवाब दे सकते हैं, पर बड़ों का हम दिल से सम्मान करते हैं
हमारी खुशी से इन्हें कोई मतलब नहीं होता, हर पल तिरस्कार कर ये हमारा अपमान करते हैं

कठपुतली बन जाते हैं हम इनके हाथों की, हमसे हमारी आजादी छीन जाती है
इनकी चाहतों को पूरा करते करते, हमारी उम्र गुजर जाती है।