...

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ऐ ज़िंदगी, तू कहाँ कब थमी है?
करना तो बहुत कुछ है, लेकिन
कैसे करूं, वक्त की कमी है।
चलती का नाम है ज़िंदगी,
ये कहाँ कब थमी है।

उम्र तो सिर्फ यूं ही बढ़ता गया,
दिल तो अभी बच्चा है।
नाम के सिर्फ बड़े हो गए,
दिमाग तो अभी कच्चा है।

जी करता है यूं रुक कर
एक लंबी साँस ले लूं,
पर कैसे करूं, वक्त की कमी है।
चलती का नाम है ज़िंदगी,
ये कहाँ कब थमी है।

यूं चुप रह-रहकर
दिल भी पत्थर का बन गया,
आँसू भी जमी है।
चलती का नाम है ज़िंदगी,
ये कहाँ कब थमी है।

ऐ ज़िंदगी, अब तो थम जा,
ज़रा खुल कर जी लेने दे,
सारे ग़म को भुला देने दे,
सारे ग़म को पी लेने दे।

लेकिन तू कहाँ कुछ सुनेगी,
कहाँ कुछ मानेगी?
तू कहाँ रुकेगी?
तू तो बस यूं चलती जाएगी।

ख़्वाहिशें बहुत हैं मेरी,
पर क्या करूं, वक्त की कमी है।
चलती का नाम है तू,
तू कहाँ कब थमी है?
ऐ ज़िंदगी, तू कहाँ कब थमी है?

© Shreya N.B.