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उनसे जो कहनी थी हमें अधूरी वो बात रह गई है...
उनसे जो कहनी थी हमें अधूरी वो बात रह गई है,
हमारी आँखों में उनके नाम की बरसात रह गई है,

चांँद भी चल दिया बज़्म से हमारी चांँदनी के संग,
जो रह गई पास हमारे वो तन्हा सी रात रह गई है,

बस पलकें मूंदी और उठाई तो रौशन सहर हो गई,
दरमियाँ इसके मरहूम अपनी मुलाक़ात रह गई है,

बज़्म-ए-शहर-ए-वस्ल में भी ताख़ीर से पहुँचे, जाने,
जान-ए-हयात की नज़रों में क्या औकात रह गई है,

सभी मरहूम असीरों की नज़रें आबदीदा हो गई के
दरीचा-ए-दहर पर उनकी जान-ए-हयात रह गई है,

जज़्बा-ए-मोहब्बत में शिकवा-ए-बुताँ करने चले थे,
भुल गए के ख़ामोशी ही अब अपनी जात रह गई है,

कूचा-ए-जाना के बिछड़े मिलेंगे भी वहीं कहीं पर,
इसी कासा-ए-उम्मीद में क़ैद कायनात रह गई है।।

© pooja gaur
Pooja Gaur