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आँखों के सागर 🌼
अहसास वो सब भी बयाँ हो ही जाते हैं,
जो ज़ुबाँ से कभी हम कह भी नहीं पाते हैं।
अक्सर ख़ामोशियों के बादलों में सिमटकर,
उदास आँखों में ही तन्हा उमड़ते रहते हैं।
बोझ बढ़ता रहे अगर रूह पर उदासियों का,
अश्कों में घुल-घुलकर ये बह भी जाते हैं।
हैरान भी करते हैं इंसाँ को बिन बुलाए आकर,
ग़म और ख़ुशी के जुगनू बन, टिमटिमाते हैं।
आँखों के सागर भी कोई तिलिस्म हैं जैसे,
हर रोज़ छलकते, लेकिन खाली कहाँ होते हैं।
© संवेदना
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