10 views
प्रकृति चेतावनी
सावधान हे लोभी मानव,
करने सचेत आई हूं।
एक सीमा तक हूं शांत मैं,
अन्यथा काल परछाई हुं।।
छमा करी तेरी खता अभी तक,
जान के अपना बालक।
पर अपनी तृष्णा की खातिर तूने,
ने देखी मेरी हालत।।
एक–एक तरु के मृत्यु का,
प्रतिशोध जो हमने लिया।
ज़िंदा नर्क बनेगा जीवन,
मरने को तड़पेगा तेरा जिया।।
न कर इतना तू विवश मुझे,
कि विराट रूप मैं भी धर लूं।
गर कर दी मैंने शंखनाद,
पुनर महाभारत कर दूं।।
अभी देखा तूने युद्ध कहां,
समर कहां तूने देखा।
अभी तो बाकी है प्रतिकार,
एक–एक डाल जो तूने काट फेंका।।
खुद होकर छल्ली उगा फसल,
तुम सब का पेट पाला।
ऐ स्वार्थी न कर इतना विवश मुझे,
कि धधके वहां से ज्वाला।।
अंतिम ये चेतावनी है,
जो तनिक बुद्धि तो कर अमल।
अन्यथा स्वर्ग समान धारा,
फिर बन जाएगी मरुस्थल।।
फिर करे तू चाहे क्षमा याचना,
मयस्सर न होगी छांव तुझे।
बनी जो हरी का सुदर्शन मैं,
पाएगा तू न बांध मुझे।।
🌍🌳🌴🍃🏜️🏞️🌪️🌊🌏
–ध्रुव
© Dhruv
करने सचेत आई हूं।
एक सीमा तक हूं शांत मैं,
अन्यथा काल परछाई हुं।।
छमा करी तेरी खता अभी तक,
जान के अपना बालक।
पर अपनी तृष्णा की खातिर तूने,
ने देखी मेरी हालत।।
एक–एक तरु के मृत्यु का,
प्रतिशोध जो हमने लिया।
ज़िंदा नर्क बनेगा जीवन,
मरने को तड़पेगा तेरा जिया।।
न कर इतना तू विवश मुझे,
कि विराट रूप मैं भी धर लूं।
गर कर दी मैंने शंखनाद,
पुनर महाभारत कर दूं।।
अभी देखा तूने युद्ध कहां,
समर कहां तूने देखा।
अभी तो बाकी है प्रतिकार,
एक–एक डाल जो तूने काट फेंका।।
खुद होकर छल्ली उगा फसल,
तुम सब का पेट पाला।
ऐ स्वार्थी न कर इतना विवश मुझे,
कि धधके वहां से ज्वाला।।
अंतिम ये चेतावनी है,
जो तनिक बुद्धि तो कर अमल।
अन्यथा स्वर्ग समान धारा,
फिर बन जाएगी मरुस्थल।।
फिर करे तू चाहे क्षमा याचना,
मयस्सर न होगी छांव तुझे।
बनी जो हरी का सुदर्शन मैं,
पाएगा तू न बांध मुझे।।
🌍🌳🌴🍃🏜️🏞️🌪️🌊🌏
–ध्रुव
© Dhruv
Related Stories
13 Likes
12
Comments
13 Likes
12
Comments