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अपराध
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है।
किस भांति देखो आघात करता है।
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है।
किसी भी बात पे टिप्पणी नहीं करता है।
ख़ामोशी से दूसरों की नींव हिला देता है।
मन अगर चाहे तो कुछ भी कर सकता है।
एक शब्द अपने मुख से नहीं बोलता है।
चुप रह कर सब कुछ ही देखता रहता है।
मन की बातों को सिर्फ़ मन ही जानता है।
मन की बातें कोई और नहीं समझ सकता है।
मन ने जब-जब भी कभी मौन व्रत धरा है।
समझ जाना उसके मन को आघात पहुॅंचा है।
मन मौन व्रत कर अपराध करता है।
किस भांति देखो आघात करता है।
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है।
किसी भी बात पे टिप्पणी नहीं करता है।
ख़ामोशी से दूसरों की नींव हिला देता है।
मन अगर चाहे तो कुछ भी कर सकता है।
एक शब्द अपने मुख से नहीं बोलता है।
चुप रह कर सब कुछ ही देखता रहता है।
मन की बातों को सिर्फ़ मन ही जानता है।
मन की बातें कोई और नहीं समझ सकता है।
मन ने जब-जब भी कभी मौन व्रत धरा है।
समझ जाना उसके मन को आघात पहुॅंचा है।
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