...

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लड़की
मुझ से मेरा मन पुछे बार बार

क्यों लड़की होने का एहसास होता है हजार बार

दुनिया बदली, समाज बदला पर सोच न बदली

छोटी थी तो दुलारी थी, सबकी प्यारी थी

सबकी आंखों में राजकुमारी थी

बड़ी हुई तो सबकी चिंताओं की पिटारी थी

माता-पिता की जिम्मेदारी थी

बढ़ी पली किसी के घर

बंध गई किसी के संग

अब अपने प्रिय की घर वाली थी

सारी जिम्मेदारियों की रखवाली थी

मुझे कभी न मिला चैन

हर एक बात की वजह ठहराई गई

नौकरी करुं तो जिम्मेदार

न करुं तो बेकार

अगर औलाद अच्छे और गुणवान

तो मेरा बखान

नहीं तो मेरी परवरिश का विधान

मुझ से मेरा मन पुछे बार बार

क्यों लड़की होने का एहसास होता है हजार बार।।


—अंकिता द्विवेदी त्रिपाठी —

© Anki