...

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समय के खिलाफ़
समय के खिलाफ तू ना ज्यादा उड़ाकर
बात ज़रूरी हमारी भी कभी तो सुनाकर

करते हैं तेरा इन्तेज़ार कभी साथ चला कर
तन्हा से हैं बेक़रार कभी आके मिला कर

ना सोचाकर ये अजनबी सा अपना कौन है
है हक़ीक़त कोई ये हसीं सा सपना कौन है

ना दूर होना कि मीलों चले हैं तुझे पाने को
वक़्त मंज़िल हुए एक इश्क आज़माने को

वक़्त के लिफ़ाफ़े में सवालों के जवाब मुस्कुराते हैं
होगी इश्क की मंज़िल से मुलाक़ात यही बताते हैं
NOOR E ISHAL
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