...

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दिल की साजिश
मुझे इश्क है तुम्हीं से है दिल की ये साज़िश
सुकून हुआ ग़ायब है हर सू फक़त आतिश

हक़ीक़तों के दरिया पे चाहतों का असर ना था
दिल की साज़िशों का भी मुझपर असर ना था

कोशिशें बदस्तूर जारी रही दिल ए नादां की बहुत
गलियाँ इश्क की होकर रौशन शादां थी बहुत

बहुत समझाया उसे मगर ना हुआ कुछ असर
दिल तो आ गया था ज़िद पर यही थी फ़िकर

हर सवाल पर मेरे पत्थर सा बन गया था वो
ख्वाहिशों की नदी में उतरने को अड़ गया था वो

फ़िर ले आयी मैं उसे कड़वी हकीकतों के दयार में
रोते तड़पते तन्हा से कुछ लोग थे इश्क़ के हिसार में

बहुत देर तक खामोश हैरां सा कुछ सोचता रहा
मैं थी मुतमईन मगर दिल बहुत कुछ बोलता रहा

समझ गया था इस नगरी के नये खेल अनोखे
जा बैठा उस मुंडेर पे जहाँ थे समझदारी के झरोखे
NOOR E ISHAL
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