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पग रुके ही नहीं....
मंज़िल दूर हो भले ही,
रास्ते में कांटे भी सही,
मगर पग रुके ही नहीं।
आलोचनाओं की बौछारों में
मन की घायल छतरी को
साहस ने दृढ़ता से सिए।
विचलित भी न हुआ मन
क्षण भर के लिए।
धारण किए फिर धैर्य वही,
पग रुके ही नहीं।
अग्रसर रहे मंज़िल की ओर,
थकान का आभास तक नहीं,
दौड़ते रहे सपनों की राह पर,
फिर मुलाक़ात हुई सपने की
वास्तविकता से वहीं।
छू लिया हाथों ने ऊँचाईयो को,
फिर भी पग रुके ही नहीं।
पैरों के निशान के साथ
वो बुरे वक़्त भी छुट गए पीछे,
परंतु स्वभाव सरल अब भी वही।
और बढ़ते रहे हम यूं ही,
कभी ये पग रुके ही नहीं।
-@Kavyaprahar
रास्ते में कांटे भी सही,
मगर पग रुके ही नहीं।
आलोचनाओं की बौछारों में
मन की घायल छतरी को
साहस ने दृढ़ता से सिए।
विचलित भी न हुआ मन
क्षण भर के लिए।
धारण किए फिर धैर्य वही,
पग रुके ही नहीं।
अग्रसर रहे मंज़िल की ओर,
थकान का आभास तक नहीं,
दौड़ते रहे सपनों की राह पर,
फिर मुलाक़ात हुई सपने की
वास्तविकता से वहीं।
छू लिया हाथों ने ऊँचाईयो को,
फिर भी पग रुके ही नहीं।
पैरों के निशान के साथ
वो बुरे वक़्त भी छुट गए पीछे,
परंतु स्वभाव सरल अब भी वही।
और बढ़ते रहे हम यूं ही,
कभी ये पग रुके ही नहीं।
-@Kavyaprahar
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