...

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बेजुबा जानवर की आवाज़
नबी बनकर, दबी पाँव आते हो
कैसी है ये जिन्दगी तेरी।
पिटकर, मारकर देकर घाव जाते हो,
कैसी है ये गन्दगी तेरी।
रोते हो जब खरोंच आई जिस्म में तेरी,
और हँसते हो जब हुई खुद-खुशी मेरी।
जीते जी माड़ते हो , फिर चैन से ताड़ते हो,
कैसी है ये दरिंदगी तेरी।
चाह के भी कुछ न कह पाऊं,
कैसी है ये शर्मिंदगी मेरी।
सोचते होंगे ख़ुदा भी " जो करते हैं बंदगी मेरी,
क्यूँ है उससे बे-दिल-लगी तेरी "

© Aman Sri


नबी :- messenger of God