...

2 views

साथ
तेरे फैसले सदा ही सच उतरते हैं
घर की शान तुझे यूं ही तो नहीं कहते हैं

लड़खड़ाते थे जब मेरे कदम दुनियां से हार के
इक तुम ही तों हो मेरे, जो मेरे लिए चांद बन जाते हो

संघर्ष के इस उफान में कश्ती जाने कितनी बार चकराती थी
हर कहीं, तुफानों की गर्जन हवाओं सरसराहटों में डुबते दिल को तसल्ली तुम देती हो

मिट जाएंगी सारी मुसीबतें जानता हूं
हौसलों के सागर मंजिल तक पहुंचाएंगे

इक साथ सच्चा गर कभी मिल जाए तो
मिल जाओगे उससे भी, नजरों में उतरती आब की तासीर कोसमझ पाओगे ।

© सुशील पवार