...

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*** उजाला हो गया देखो ***
उजाला हो गया देखो ,मैं अब घर लौट जाना चाहता हूँ,
रात भर लड़ी दीये ने तम से जंग ,सहर को बताना चाहता हूँ,
भटकता रहा हूँ उम्रभर , निज अस्तित्व की तलाश में,
डोलता है मृग जैसे , एक अनबुझी सी प्यास में,
छोड़ मोह माया को , यारी ख़ुद से निभाना चाहता हूँ ,
उजाला हो गया देखो ,मैं अब घर लौट जाना चाहता हूँ,

धरा की गोद में कितनी , कलियों ने आँख खोली है,
विहग भी बोल रहे खनक के ,सबसे प्रेम वाली बोली है,
मैं भी कोयल की तरह , सुरों को सजाना चाहता हूँ ,
उजाला हो गया देखो ,मैं अब घर लौट जाना चाहता हूँ,

रहा हूँ उम्रभर जैसे , मैं एक सूखा हुआ शज़र,
ना कभी दिल में खुशी की , ठहरी कोई नज़र,
मैं अब पत्तो की तरह शाख से ,उतर जाना चाहता हूँ,
उजाला हो गया देखो ,मैं अब घर लौट जाना चाहता हूँ।।

-पूनम आत्रेय