...

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पैबंद
तुम मुझमें शामिल नहीं आलम,
फिर भी मैं हूँ तुम में, तुमसी समाई हुई।

हर वस्ल के इरादे में ठोकर-सी,
रुखसती चौखटों पर खनखनाई हुई।

मुझे मालूम है, परछाइयों के शौक में,
मेरे पीछे है तुमने दुनिया बसाई हुई।

तरीका यही शामियाने का पैबंद रहेगा वाणी,
बस मोहब्बत की, मोहब्बत से विदाई हुई।
© वाणी