मैं और क़लम
मैं और क़लम दोनों का अनोखा रिश्ता है
मैं जो भी सोचूं क़लम लिख देती है
मेरे अंदर के सारे दर्द को निकालती है
कितना भी रोकू बाहर निकाल ही देती है
मैं और क़लम एक दूसरे के साथी है
क्योंकि वो मेरे ज़ज्बातों को खूब समझती है
अपनी स्याही से मेरे दिल में...
मैं जो भी सोचूं क़लम लिख देती है
मेरे अंदर के सारे दर्द को निकालती है
कितना भी रोकू बाहर निकाल ही देती है
मैं और क़लम एक दूसरे के साथी है
क्योंकि वो मेरे ज़ज्बातों को खूब समझती है
अपनी स्याही से मेरे दिल में...