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हम घर में बढ़े थे ।
बाहर जा रही हो जल्दी आना ।
काम बहुत है रूक मत जाना ।
ये कहकर मां ने है बार टोका।
क्युकी हम घर में बढ़े थे यार ।
बहुत शौक था हमे ऊंची पढ़ाई करने ।
हर वक्त कुछ नया करने का ।
पैसे नही है ,ये सोचकर मन थम गया ।
क्युकी हम घर में बढ़े थे यार ।
उम्र से पहले समझदार हो गए ।
नादानियो का करना छुट गया ।
बचपन हाथ से फिसल गया ।
क्युकी हम घर में बढ़े थे यार ।
कुछ लोग कहते है की हमे घर में बच्चो की तरह रखा जाता है ।
बचपना हर किसी के अंदर होता ।
बस जिमीदारियो में हमारे चेहरे की मासूमियत छिन गई ।
क्यूकी हम घर में बढ़े थे यार।
© Sarthak writings
काम बहुत है रूक मत जाना ।
ये कहकर मां ने है बार टोका।
क्युकी हम घर में बढ़े थे यार ।
बहुत शौक था हमे ऊंची पढ़ाई करने ।
हर वक्त कुछ नया करने का ।
पैसे नही है ,ये सोचकर मन थम गया ।
क्युकी हम घर में बढ़े थे यार ।
उम्र से पहले समझदार हो गए ।
नादानियो का करना छुट गया ।
बचपन हाथ से फिसल गया ।
क्युकी हम घर में बढ़े थे यार ।
कुछ लोग कहते है की हमे घर में बच्चो की तरह रखा जाता है ।
बचपना हर किसी के अंदर होता ।
बस जिमीदारियो में हमारे चेहरे की मासूमियत छिन गई ।
क्यूकी हम घर में बढ़े थे यार।
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