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आंखों में जो उतरी थी उसे डोली पर लाना था
आंखों में जो उतरी थी उसे डोली पर लाना था
बड़ी देर हो गई उसे सच सच बताना था
हैं मोहब्बत तुमसे किसी और का बहाना था
नकाब उतार कर उसको असली चेहरा दिखाना था
आंखों में जो,,,,,,,,,
दिन गुजरा, रात गुजरा , कभी तो उधर जाना था
किसी बहाने उससे दो चार शब्द बतियाना था
सब काम मैनेज करते हुए
कभी तो उसकी गली में आना था
आंखों में जो,,,,,,,,,
भोली है बेचारी ऐसे ना सताना था
रास्ता पैड़ा डगर डगर उसे घर तक पहुंचाना था
बड़ी भुल हो गई यार सोच न सका
अंधेरे में साथ उसकी, उसके घर तक देना था
आंखों में जो,,,,,,,,,
© Sandeep Kumar
बड़ी देर हो गई उसे सच सच बताना था
हैं मोहब्बत तुमसे किसी और का बहाना था
नकाब उतार कर उसको असली चेहरा दिखाना था
आंखों में जो,,,,,,,,,
दिन गुजरा, रात गुजरा , कभी तो उधर जाना था
किसी बहाने उससे दो चार शब्द बतियाना था
सब काम मैनेज करते हुए
कभी तो उसकी गली में आना था
आंखों में जो,,,,,,,,,
भोली है बेचारी ऐसे ना सताना था
रास्ता पैड़ा डगर डगर उसे घर तक पहुंचाना था
बड़ी भुल हो गई यार सोच न सका
अंधेरे में साथ उसकी, उसके घर तक देना था
आंखों में जो,,,,,,,,,
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