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तुम कौन हो?
सुगंध स्वतंत्रता की
होती है बड़ी सुहानी
जिसने करा दिये हैं
अनेको देशों में क्रांति
आखिर क्यों इसके लिए हो जाते हैं लोग तैयार
खुद के रक्त तक बहाने को
खुद की जान दांव पर लगाने को?
किसके विरुद्ध चाहिए यह?
धर्म के?
समुदाय के?
किसी विशेष जाति के?
रूढ़िगत समाज के?
किसी तानाशाही सरकार के?
या किसी अदृश्य काँच के?
या फिर संप्रदाय के?
गर हर व्यक्ति है परमात्मा का एक अंश
तो फिर वह अपने आप में है स्वतंत्रत!
इसलिए कोई किसी पर क्यों अपना विचार थोपे!
अपनी मान्यता व परंपरा की खाई में क्यों झोंके!
क्या उसी में एक मात्र बेहतर विचार है?
उसी का सत्य पर मात्र एक अधिकार है?
गर ऐसा है तो क्या वह इस सृष्टि को बनाने वाले का रिश्तेदार है?
तुमने कभी सोचा है?
कि तुम कौन हो!
समाज द्वारा दिये नाम, सोहरत, एक विशेष पहचान जो एक जाति, धर्म ,संप्रदाय , भाषा, संस्कृति , लिंग, नस्ल, रंग के रूप में होती है
यही सब दिमाग में आ रहा है न!?
अगर यही सब " तुम कौन हो? " प्रश्न का उत्तर है तो फिर वो तुम नहीं हो बल्कि वो कोई और है,
इन सबको दिमाग से निकालकर फिर सोचो तुम हो कौन???