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अपराध #मानवता
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
इन आँखों में अधेंरा भी श्रृंगार करता है
लोग भूले नहीं है व्यथा की बात को
ऊपरी तबकों के नीचे किये आघात को
वक्त बाती की भांति अब जलता है
कंपन हृदय में जोर का चलता है
फूल माली सींचे और प्रभु माल बने
प्रभु घर में माली का बुरा ही हाल बने
शब्दअछूत होने जब भी कोई सुनता है
मानवता का सच में गला घूमता है
सेठ शाही बंद करने की घड़ी है
अपराध जन्म लेना नहीं हो ये सही है
तुम जो जोरों से प्रभु को पूजते हो
तुम जो प्रभु की कही पर चलो तो ये सही है

© RYansh