आँखें कितना कुछ झेलती है
ये आखेँ कीतना कुछ झेलती है।
महफ़िल में मुसकुराकर
एकेली तनहाई में रोती है।
इंतज़ार में उसके
ना जाने कितना तडपती है।
महोब्बत ये दिल करता है।
और ददँ जुदाई का
ये आखेँ सहेती है।
पसंद इस दिल को है और
उसे एक दफा देखने को
ये आखेँ तरसती है।
ये आखेँ कीतना कुछ झेलती है।
-jinal patel
महफ़िल में मुसकुराकर
एकेली तनहाई में रोती है।
इंतज़ार में उसके
ना जाने कितना तडपती है।
महोब्बत ये दिल करता है।
और ददँ जुदाई का
ये आखेँ सहेती है।
पसंद इस दिल को है और
उसे एक दफा देखने को
ये आखेँ तरसती है।
ये आखेँ कीतना कुछ झेलती है।
-jinal patel