सुहानी पूर्णमासी
लो फिर आ गई पूर्णिमा की चाँदनी रात
मदहोश सी कलियां भरे जहां अंगड़ाई
न जाने क्या बतलाती है चाँद की चाँदनी
कभी चमकती तो कमी दमकती है इसकी प्याली
उसकी आभा में सिमटी हो जैसे रूप की रानी
बिम्बा में उसकी ओझल होते शमा के नीले बेर
जिनकी मिठास की महक से उठता मेरा सेर
रात में टीम टीम करते सितारों से जुगनू
डाल–डाल...
मदहोश सी कलियां भरे जहां अंगड़ाई
न जाने क्या बतलाती है चाँद की चाँदनी
कभी चमकती तो कमी दमकती है इसकी प्याली
उसकी आभा में सिमटी हो जैसे रूप की रानी
बिम्बा में उसकी ओझल होते शमा के नीले बेर
जिनकी मिठास की महक से उठता मेरा सेर
रात में टीम टीम करते सितारों से जुगनू
डाल–डाल...