...

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लफ्ज़ों का खेल!
हर शय ज़माने की फना होती है,
हर बात कहाँ लब से बयां होती है!

साहिब-ऐ-दिल हो तो जानते होगे ये भी,
दिल की तकलीफ कब लफ्ज़ों में बयां होती है!

बक़ौल उसे महसूस किया जा सकता है,
मगर ये हक़ीक़त भी हस्सासों पर अयां होती है!

जाने वाले लोट ही आते हैं एक वक़्त के बाद,
मगर कब लोटते हैं वो जिनसे ज़िन्दगी ख़फा होती है!

आस ये लफ्ज़ों का खेल चलेगा कब तक,
बिखरे हुये हर-२ लफ्ज़ की एक ज़ुबां होती है!
© alfaaz-e-aas