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अब घर फीकी बस्ती फीकी दिल बेचैन है
अब घर फीकी बस्ती फीकी दिल बेचैन है
तेरे शहर आ जाऊं सुना है तेरी बाहों में सुख चैन है
वहां ,यहां वहां दौड़ भाग की आवश्यकता नहीं
तुझमें समाहित सारी दुनिया कि रैन है
अब घर,,,,

यहां दर-दर भटकना पड़ता है एक-एक चीज के लिए
वहां दुकानों का ढ़ेर है
सजनी तुम परमिशन दे दे तेरी आंखों में रहना है
सुना है तेरी आंखों की लग्जरी शहर से जबर्दस्त तालमेल है
अब घर,,,,

यहां खाट पर सोते हैं जमीन पर खाली पैर चलते हैं कारपेट नहीं है कॉकरोच, खटमल रेंगते हैं
तेरी महल में बिंदास जीवन जबरदस्त गेट व्यवस्थित एक वस्तु एक एक सेट है
प्यारी मोहन तुम अपने में समाहित कर ले न अकेले जीने की साहस नहीं
यहां भूख से तराही मान जीवन धूप में जल रहा देह हैं
अब घर,,,,

यहां कीचड़ ,मक्खर ,बस्ती घर, चुता टिन, छप्पर दैनिय से दैनिय स्थिति लोगन में एक दुसरे से बैर है
तुम्हारे यहां देखो महल, पानी निकासी का सुसज्जित नाला कितनी अच्छी मकान की बैंड, किसी को न किसी से मतलब(जलन) सब को सबसे ताल मेल है
तुम बुला ले न जाने मन पास अपने यहां दुर्गति का चल रहा खेल है
लाठि डंडा के सहारे (काला अक्षर भैंस बराबर का) चलता यहां खौफनाक खेल है
अब घर,,,,

यहां बाग है बगीचे है दादी नानी की घिसी पिटी किस्से है लेकिन
तेरे पास मॉडर्न युग की देश प्रेमियों से भरा टेलीकॉम इंडस्ट्री की डिवाइस अच्छे-अच्छे पसंद दीदे बूफर के मेल है
तेरी झील सी आंखों में आकर रह लूं रहने की परमिशन दे
मेरे लिए वही सारी दुनिया की सारी दौलत का रेल है
अब घर,,,,

नहीं कुछ मांग तुमसे बस तेरी जिगर में रहूं यही मेरी अरमान की हमसे झेल है
तु स्याही मेरी पन्ने की तु मूरत तुम्हें सजाता फिरता हूं तुमसे कलम का अच्छा तालमेल है
तुम हर कविता कहानी गीत में
लोगों की हंसी, मिठास जीवन,क्लह दूर भगाने की एक मेरी प्रेमिका
तुमसे मेरा और मेरी लेखन का जबरदस्त(खूबसूरत) समाज सेवा का अवसर व ताल मेल है
अब घर,,,,
संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar