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बेबसी
बेबसी

बेबसी इन हाथों की लकीरों की, ए खुदा तू ही बता
क्यों चाह कर भी चाह न सके दिल, कैसी ये बेबसी,

कोई तो हुनर दे, पढ़ सकूं इन लकीरों के उतार चढ़ाव
नाकाम रही तमाम कोशिशें, हर लम्हा छाई है बेबसी,

खुशियों ने कितनी ही बार मेरे दरवाज़े खटखटाए
पुकार मुझे साथ चलने को कहा, छोड़ती नहीं बेबसी,

घुट घुट कर मरती, जीने को बेहद तड़पती ज़िंदगी
छोड़ती नहीं पीछा कभी, दुष्ट ज़िद्दी बैरन ये बेबसी,

साहिल की रेत पर मुस्कुराकर, नाम अपना उकेरा
पल भर को भी खुश कहीं, नहीं रहने देती ये बेबसी,

अब तू ही बता ए खुदा, किस हाल में तन्हा रहूं
एक तरफ़ तन्हाई दूसरी ओर सताती है, ये बेबसी!

© सुधा सिंह 💐💐