" निकले थे "
" निकले थे "
निकले थे यूँ ही सफ़र पर तन्हा..
लौटे हैं दिल की गहराई में लाखों
दर्द की इंतेहा लेकर यूँ ही तन्हा..!
निकले थे यूँ अपनों के अपनेपन
को हम तलाशने..
अफ़सोस के खुद को बेग़ानों में
कुछ यूँ इर्द-गिर्द घिरा हुआ पाया..!
मानो कि भ्रम की आंधियों में बिखर
गए मेरे अपनों का कारवां..!
निकले थे यूँ ही के खुद को ताजी
आबो हवा में रह कर चंगा करेंगे..!
मगर हालत में कोई सुधार नहीं हुआ..!
खुद को दर्द-ए-सितम के सिवा कुछ
और दिला नहीं सकें...
निकले थे यूँ ही सफ़र पर तन्हा..
लौटे हैं दिल की गहराई में लाखों
दर्द की इंतेहा लेकर यूँ ही तन्हा..!
निकले थे यूँ अपनों के अपनेपन
को हम तलाशने..
अफ़सोस के खुद को बेग़ानों में
कुछ यूँ इर्द-गिर्द घिरा हुआ पाया..!
मानो कि भ्रम की आंधियों में बिखर
गए मेरे अपनों का कारवां..!
निकले थे यूँ ही के खुद को ताजी
आबो हवा में रह कर चंगा करेंगे..!
मगर हालत में कोई सुधार नहीं हुआ..!
खुद को दर्द-ए-सितम के सिवा कुछ
और दिला नहीं सकें...