...

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मिली संजीवनी
एक दस्तक हुई मेरे दिल में,
धड़कनों की वो राहत मिली।
ढूंढते थे जिसे हर तरफ,
वो उसी मोड़ पर हमें मिली।
सोचते थे छूट गया साथ उनसे,
वो तो डोर कस के थामे मिली।
कोई दुख या दर्द न दें उसे,
पर वो मेरे जख्मों की मरहम निकली।
कोमल सी सिमटी रहती थी वो,
देने मुझे सहारा स्तंभ सी निकली।
एक दस्तक हुई मेरे दिल में,
धड़कनों की वो राहत मिली।

कुछ बाते कुछ यादें नम करती आंखे मेरी,
नम आंखों को हंसी में बदलती मिली।
न मिल पाने का गम मेरा उससे,
करीब आने की गजब उसकी सोच मिली।
मेरा हमेशा संजीदा रहना उसके सामने,
वो हमेशा की तरह बेफिक्र ही निकली।
मेरे हर ख्वाहिश को मान दिया,
वो हर वक्त मुझें प्यार देती मिली।
एक दस्तक हुई मेरे दिल में,
धड़कनों की वो राहत मिली।
वो मेरे जीवन की संजीवनी बनी
संजीव बल्लाल२५/४/2023
© BALLAL S