...

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मैं स्त्री हूं!!
मैं स्त्री हूँ !
सहती हूँ
तभी तो तुम कर पाते हो गर्व
अपने पुरूष होने पर

मैं झुकती हूँ !
तभी तो ऊँचा उठ पाता है
तुम्हारे अंहकार का आकाश।

मैं सिसकती हूँ !
तभी तुम कर पाते हो खुलकर अट्टहास....

हूँ व्यवस्थित मैं
इसलिए तुम रहते हो अस्त व्यस्त।

मैं मर्यादित हूँ
इसीलिए तुम लाँघ जाते हो सारी सीमायें।

स्त्री हूँ मैं !
हो सकती हूँ पुरूष
पर नहीं होती
रहती हूँ स्त्री इसलिए
ताकि जीवित रहे तुम्हारा पुरूष
मेरी नम्रता, से ही पलता है तुम्हारा पौरुष...
मैं समर्पित हूँ !

इसीलिए हूँ उपेक्षित, तिरस्कृत।
त्यागती हूँ अपना स्वाभिमान
ताकि आहत न हो तुम्हारा अभिमान
जीती हूँ असुरक्षा में
ताकि सुरक्षित रह सके
तुम्हारा दंभ।

सुनो !
व्यर्थ नहीं हूँ मैं !
जो तुम सिद्ध करने में लगे हो

बल्कि मेरे कारण ही हो तुम अर्थवान
अन्यथा अनर्थ का पर्यायवाची होकर रह जाते तुम !
😊❤️
_ ऋषिकेश तिवारी