...

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चाँद तो चाँद है
अब चाँद चाहे जैसे भी बना हो.. चाँद तो चाँद है...

सुनहरी धूप की चादर वो पूरे चाँद की रातें
हम उन में क़ैद रहते हैं कभी बाहर नहीं आते

चाँद जैसा चाँद हो कर चाँद क्यों लगता नहीं
रौशनी कोहिनूर सी है चाँद की इस रात में

चाँद कुछ धीरे से बोला तो था मेरे कान में
चाँद की मैं बात सुनती चाँद की इस रात में

रात-भर चाँद की गलियों में फिराती है मुझे
ज़िंदगी कितने हसीं ख़्वाब दिखाती है मुझे

चाँद की अपनी कहानी रात का क़िस्सा अलग
दास्तान-ए-इश्क़ में है तजरबा सब का अलग

अजनबी हम आज से हैं पर सफ़र तो है वही
सिर्फ़ कह देने से होता है कहीं रस्ता अलग

इश्क़ के बीमार पर सारी दवाएँ बे-असर
चारा-गर उस की दवा का है ज़रा नुस्ख़ा अलग

चलते चलते आप ने देखा था हम को बस यूँ ही
शहर में उस दिन से अपना हो गया रुत्बा अलग

रौशनी दीपक की सूरज चाँद की अपनी जगह
नूर से रौशन तिरे माथे का ये टीका अलग NOOR EY ISHAL
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