...

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“दास्ताँ-ए-दर्द”
दर्द की भी बड़ी अजीब दास्ताँ है
ज़ख़्म जो दीखते हैं भर जाते हैं
मगर जो ज़ख़्म दिल पर खायें हैं
दीखते तो नहीं मगर दुखते बहुत हैं
दरअसल प्यार है क्या
बस इन ज़ख्मों का ही लेखा जोखा है!
हासिल नहीं है जब तक
दिल के ज़ख़्मों में प्यार रहता ज़िंदा है।
#ramphalkataria
© Ramphal Kataria