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भाव
हे माधव सुनो!
कि नहीं आता है मुझे प्रेम को परिभाषित करना,
या महबूब को कोई नाम देना,
नहीं आता है प्यार से पुचकारना,
मीत या मनमीत पुकार तुम्हें अपने प्रेम की गहराई समझने पर विवश करना,
मैंने सीखा है जीवन के अनुभव से
तुमसे दूर रहकर भी खामोशी से चाहना,
हाँ ईर्ष्या होती है मुझे भी , मन है ना
स्वाभाविक है,
जब तुम औरों के निकट होते हो,
जब तुम्हारे शब्दों में मुझे मैं दिखाई नहीं देती,
हाँ ईर्ष्या होती है मुझे जब तुम मुझे
समझाने की कोशिश करते हो,
मेरे ख्वाबों में आकर कि प्रेम ईर्ष्या से परे है,
हाँ तकलीफ़ होती है मुझे
जब मैं तुम्हें खुलकर पुकार नहीं सकती,
तुम्हें तुम्हारी पहचान से नहीं बुला सकती,
तकलीफ़ होती है जब मुझे समझना होता है,
जीवन के नियम,
मैं मीरा नहीं हूँ माधव,
ना ही राधा की सी प्रेम कर सकती हूँ,
मैं तो अपराह्न हूँ, जो ढलने की सीमा की शुरुआत है,
मैं बस अस्त होती हूँ, जिसकी चाहत शायद ही कोई करता हो,
मैं दीवा तो हूँ पर दीवा का वो हिस्सा हूँ, जिससे सबको हमेशा दर्द ही होता है,
© @Deeva
कि नहीं आता है मुझे प्रेम को परिभाषित करना,
या महबूब को कोई नाम देना,
नहीं आता है प्यार से पुचकारना,
मीत या मनमीत पुकार तुम्हें अपने प्रेम की गहराई समझने पर विवश करना,
मैंने सीखा है जीवन के अनुभव से
तुमसे दूर रहकर भी खामोशी से चाहना,
हाँ ईर्ष्या होती है मुझे भी , मन है ना
स्वाभाविक है,
जब तुम औरों के निकट होते हो,
जब तुम्हारे शब्दों में मुझे मैं दिखाई नहीं देती,
हाँ ईर्ष्या होती है मुझे जब तुम मुझे
समझाने की कोशिश करते हो,
मेरे ख्वाबों में आकर कि प्रेम ईर्ष्या से परे है,
हाँ तकलीफ़ होती है मुझे
जब मैं तुम्हें खुलकर पुकार नहीं सकती,
तुम्हें तुम्हारी पहचान से नहीं बुला सकती,
तकलीफ़ होती है जब मुझे समझना होता है,
जीवन के नियम,
मैं मीरा नहीं हूँ माधव,
ना ही राधा की सी प्रेम कर सकती हूँ,
मैं तो अपराह्न हूँ, जो ढलने की सीमा की शुरुआत है,
मैं बस अस्त होती हूँ, जिसकी चाहत शायद ही कोई करता हो,
मैं दीवा तो हूँ पर दीवा का वो हिस्सा हूँ, जिससे सबको हमेशा दर्द ही होता है,
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